अब विदेशो में नहीं रिजेक्ट होगा हमारा बासमती चावल | जाने पूरी खबर इस रिपोर्ट में

 

किसान साथियो भारतीय बासमती चावल दुनिया भर में अपनी खुशबू और स्वाद के लिए मशहूर है। हालाँकि, कुछ समय से अंतरराष्ट्रीय बाजार में कीटनाशकों के अत्यधिक इस्तेमाल के कारण भारतीय बासमती को लेकर चिंताएं व्यक्त की जा रही थीं। इस समस्या के समाधान के लिए करनाल और पानीपत में लगभग एक हजार एकड़ क्षेत्र में एक पायलट प्रोजेक्ट शुरू किया गया। इस प्रोजेक्ट में बासमती एक्सपोर्ट डेवलपमेंट फाउंडेशन मेरठ, भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान दिल्ली, एपिडा और नाबार्ड ने किसानों के संगठनों के साथ मिलकर काम किया। विज्ञानियों ने इस प्रोजेक्ट के दौरान पाया कि किसान बासमती की फसल में कीटनाशकों का अंधाधुंध इस्तेमाल कर रहे हैं। विज्ञानियों ने ऐसे उपाय खोजे हैं जिनसे कीटनाशकों का उपयोग कम से कम किया जा सके और बासमती चावल अंतरराष्ट्रीय मानकों पर खरा उतरे। शोध से यह स्पष्ट हुआ है कि यदि कीटनाशकों का उपयोग सही समय पर और सही मात्रा में किया जाए तो चावल में कीटनाशकों की मात्रा काफी कम हो सकती है। पायलट प्रोजेक्ट के दौरान उगाए गए बासमती चावल का परीक्षण किया गया और पाया गया कि यह अंतरराष्ट्रीय मानकों पर खरा उतरता है। इस सफलता के बाद उम्मीद है कि भारतीय बासमती चावल अंतरराष्ट्रीय बाजार में अपनी प्रतिष्ठा बनाए रखेगा और किसानों को बेहतर आय प्राप्त होगी। चावल के लाइव भाव देखने के लिए लिंक पर क्लिक करे

वैज्ञानिकों का प्रयास और किसानों की सफलता
भारतीय बासमती चावल विश्व प्रसिद्ध है और इसका निर्यात देश की अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण योगदान देता है। हाल ही में किए गए शोध के अनुसार, 95% किसानों द्वारा उगाए गए बासमती चावल में एमआरएल (अधिकतम अवशेष सीमा) की मात्रा 0.01% से कम पाई गई है, जो निर्यात के लिए निर्धारित मानक के अनुरूप है। वैज्ञानिकों ने बासमती चावल की गुणवत्ता सुधारने के लिए गहन शोध किया है और किसानों को एक विस्तृत पैकेज प्रदान किया है। इस पैकेज में बासमती धान की खेती के लिए आवश्यक सभी जानकारी शामिल है, जैसे कि किस समय कौन सा रसायन का उपयोग करना है, किस मात्रा में उपयोग करना है, और कौन सी बीमारियों से सावधान रहना है। यदि किसान इस पैकेज के दिशानिर्देशों का पालन करते हैं, तो वे निर्यात गुणवत्ता वाला बासमती चावल पैदा कर सकते हैं। एमआरएल एक महत्वपूर्ण मापदंड है जो खाद्य पदार्थों में कीटनाशकों की अधिकतम अनुमत मात्रा को निर्धारित करता है। जब खाद्य पदार्थों का प्रयोगशाला में परीक्षण किया जाता है, तो एमआरएल के माध्यम से यह पता चलता है कि उनमें कीटनाशकों की मात्रा सुरक्षित सीमा के भीतर है या नहीं। बासमती चावल के लिए एमआरएल 0.01 पीपीएम है, जिसका अर्थ है कि 100 टन चावल में कीटनाशक की मात्रा एक ग्राम से अधिक नहीं होनी चाहिए। यदि इस सीमा का उल्लंघन होता है, तो चावल को निर्यात नहीं किया जा सकता है। वैज्ञानिकों द्वारा विकसित किए गए नए तरीकों से किसानों को कीटनाशकों के उपयोग को कम करने और बीमारियों को नियंत्रित करने में मदद मिल रही है। इससे न केवल बासमती चावल की गुणवत्ता में सुधार हो रहा है बल्कि पर्यावरण संरक्षण में भी योगदान मिल रहा है।

भारत में बासमती का कितना हुआ उत्पादन और निर्यात
भारत में बासमती चावल की खेती मुख्य रूप से उत्तरी राज्यों में की जाती है। देश के लगभग सात राज्यों के 95 जिले बासमती उत्पादन के लिए प्रसिद्ध हैं। हरियाणा, पंजाब, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश और जम्मू-कश्मीर जैसे राज्य बासमती धान की खेती के लिए अनुकूल जलवायु और मिट्टी की स्थिति प्रदान करते हैं। विशेष रूप से, हरियाणा में बासमती की खेती का काफी बड़ा क्षेत्रफल है। यहां लगभग 7.8 लाख हेक्टेयर भूमि पर बासमती का उत्पादन किया जाता है और हर साल लगभग 30 लाख टन बासमती चावल का निर्यात किया जाता है। ये राज्य न केवल देश में बल्कि विश्व में भी बासमती चावल के प्रमुख उत्पादक और निर्यातक हैं। चावल के लाइव भाव देखने के लिए लिंक पर क्लिक करे

विज्ञानियों ने विकसित की जहर मुक्त धान की किस्मे
विज्ञानियों द्वारा बासमती धान की खेती के लिए विकसित किए गए नए पैरामीटरों को एक महत्वपूर्ण कदम माना जा सकता है जो हमें जहरमुक्त खेती की ओर ले जा रहा है। इन नए पैरामीटर्स के अनुसार, धान की खेती में उपयोग होने वाले रसायनों की मात्रा को बहुत सटीक रूप से नियंत्रित किया जाएगा। नतीजतन, फसल पकने तक ये रसायन पूरी तरह से समाप्त हो जाएंगे और धान में इनकी कोई अवशेष नहीं रह जाएगी। यह न केवल धान की गुणवत्ता में सुधार करेगा बल्कि उपभोक्ताओं के स्वास्थ्य के लिए भी सुरक्षित होगा। इस प्रकार, यह नया तरीका न सिर्फ बासमती धान की खेती को बेहतर बना रहा है बल्कि साथ ही रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के अत्यधिक उपयोग से होने वाले पर्यावरणीय प्रदूषण को भी कम करने में मदद कर रहा है।

किसान कर रहे है रसायनों अंधाधुंध उपयोग
बासमती चावल, भारत का गौरव है, लेकिन हाल के समय में रसायनों के अत्यधिक उपयोग के कारण इसकी गुणवत्ता पर सवाल उठने लगे हैं। वैज्ञानिकों ने बासमती चावल पर गहन अध्ययन किया है और पाया है कि कम मात्रा में रसायनों का सही समय पर उपयोग करके भी किसान अधिक पैदावार और बेहतर गुणवत्ता प्राप्त कर सकते हैं। किसानों को बासमती धान की खेती करते समय कुछ विशेष बातों का ध्यान रखना चाहिए। शोधकर्ताओं ने किसानों को एक विशेष पैकेज प्रदान किया है जिसमें रसायनों के कम प्रयोग और अधिक उत्पादन के तरीके बताए गए हैं। किसानों से बातचीत के दौरान यह पता चला है कि कई किसान बीमारी के लक्षण दिखने से पहले ही रसायनों का छिड़काव कर देते हैं, जो कि एक गलत तरीका है। इस समस्या को दूर करने के लिए वैज्ञानिक किसानों की सोच बदलने का प्रयास कर रहे हैं और इसमें उन्हें काफी हद तक सफलता मिल रही है। यदि किसान उच्च गुणवत्ता का बासमती चावल पैदा करते हैं तो बाजार में उन्हें अच्छी कीमत मिल सकती है और उन्हें कीमतों को लेकर चिंतित होने की आवश्यकता नहीं होगी। यह आवश्यक है कि किसान रसायनों के अंधाधुंध उपयोग से बचें और वैज्ञानिक तरीकों को अपनाएं। इससे न केवल बासमती चावल की गुणवत्ता में सुधार होगा बल्कि पर्यावरण भी सुरक्षित रहेगा।

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About the Author
मैं लवकेश कौशिक, भारतीय नौसेना से रिटायर्ड एक नौसैनिक, Mandi Market प्लेटफार्म का संस्थापक हूँ। मैं मूल रूप से हरियाणा के झज्जर जिले का निवासी हूँ। मंडी मार्केट( Mandibhavtoday.net) को मूल रूप से पाठकों  को ज्वलंत मुद्दों को ठीक से समझाने और मार्केट और इसके ट्रेंड की जानकारी देने के लिए बनाया गया है। पोर्टल पर दी गई जानकारी सार्वजनिक स्रोतों से प्राप्त की गई है।