जानिए सरकार बफर स्टॉक के लिए ऊंचे भाव में क्यों गेहूं सहित अन्य खाद्यान्न खरीदती है

 

गेहूं पर सरकार का नियंत्रण- यद्यपि यह सुनने में आता रहता है कि सरकार बफर स्टॉक के लिए ऊंचे भाव में क्यों गेहूं सहित अन्य खाद्यान्न खरीदती है, लेकिन इस बार गेहूं की किल्लत को देखते हुए यह जरूरी बात दिमाग में आने लगी है कि सरकार बफर स्टॉक में यदि माल नहीं खरीदती तो, दो तरह से नुकसान होता है। पहले यह कि किसानों को उपज की उचित कीमत नहीं मिल पाती। दूसरा यह की सप्लाई लाइन टूटने पर आम जनता को खाने के लिए रोटी के लाले पड़ जाते। सरकार का बफर स्टॉक ही है, जो वर्तमान में बिक रहा है तथा आम जनता को दो जून की रोटी मिल रही है। जून तक उत्पादक एवं वितरक मंडियों में गेहूं की आवक टूट गई थी तथा रोलर फ्लोर मिलें एवं आटा चक्कियों में गेहूं की शॉर्टज बनने लगी, इसे देखकर सरकार द्वारा खुले बाजार में गेहूं की बिक्री टेंडर द्वारा जुलाई से ही शुरू कर दिया गया है। WhatsApp पर भाव देखने के लिए हमारा ग्रुप जॉइन करें

हालांकि रोलर फ्लोर मिलों एवं आटा चक्कियों को क्षमता के अनुरूप गेहूं नहीं मिलने से महंगाई घटने का नाम नहीं ले रही है, लेकिन महंगाई नियंत्रित हुई है। सरकार को चाहिए कि प्रत्येक सप्ताह खुले बाजार में बेचे जाने वाले गेहूं का बिक्री कोटा और बढ़ाया जाए, जिससे महंगाई रूक सके। गेहूं का उत्पादन घटने से किसानों एवं कच्ची मंडियों के प्राइवेट गोदामों में स्टॉक खपत के अनुरूप नहीं है। दूसरी ओर सीजन के शुरुआत में स्टाकिस्टों द्वारा गेहूं की खरीद ऊंचे भाव में कर लिया गया, जिससे केंद्रीय पूल में भी गेहूं लक्ष्य के अनुरूप खरीद नहीं हो पाई थी। सरकार द्वारा समय-समय पर बिक्री नीति में परिवर्तन करके गेहूं की महंगाई को नियंत्रण हेतु कदम उठाए जा रहे हैं, लेकिन अभी कुछ और कमी के चलते गेहूं के भाव करेक्शन के बाद फिर महंगे हो जा रहे हैं। सरकार द्वारा महंगाई को नियंत्रण के लिए जुलाई माह में खुले बाजार में बिक्री शुरू कर दी गई तथा स्टॉक सीमा भी लगा दिया गया, इसके साथ-साथ भी टेंडर में घटा दिए गए, यह तीन कदम बहुत ही कारगर रहे हैं, लेकिन इसमें थोड़ा संशोधन की और आवश्यकता है। सरकार द्वारा दिल्ली सहित अन्य रोलर फ्लोर मिलों को 100 टन प्रत्येक मिलों को बिक्री हेतु कोटा निर्धारित किया गया है, लेकिन मिलों की संख्या एवं क्षमता साप्ताहिक 300 टन के करीब है। यह भी पढ़े :- पंजाब की मंडियों में लौटा जोश, क्या अब 5000 के पार होंगे बासमती के रेट? जानें पूरी खबर

सरकार द्वारा 10000 टन प्रत्येक सप्ताह बिक्री किया जा रहा है, लेकिन खपत गेहूं का अधिक होने से मिलों की पूर्ति नहीं हो पा रही है। यही कारण है कि गेहूं के भाव फिर से बढ़कर 2600/2605 रुपए प्रति क्विंटल हो गए हैं। गत एक माह पहले गेहूं के भाव 2575 रुपए तक ऊपर में बन गए थे, लेकिन सरकार द्वारा पिछले दिनों कोटा बढ़ा दिए जाने से घटकर 2500 रुपए पर आ गया था, लेकिन रोलर फ्लोर मिलों की क्षमता अभी अधिक है, जिससे इस कोटे को बढ़ाकर एक लाख क्विंटल यानी हजार टन कर देना चाहिए। कल का टेंडर 2125/2140 रुपए प्रति कुंतल के आसपास हुआ, लेकिन रोलर फ्लोर मिलों एवं आटा चक्कियों की क्षमता अधिक होने तथा प्रोसेसिंग के अनुरूप गेहूं नहीं मिलने से आज फिर से गेहूं तेज बोल रहे थे।

सरकार को बेसिक प्राइस पर प्रत्येक सप्ताह बिक्री कोटा बढ़ाकर 10000 टन कर दिए जाने में महंगाई संभवतः कम हो जाएगी तथा अगर संभव हो सके तो ट्रेडर्स को भी टेंडर में भागीदारी दे देनी चाहिए। हम मानते हैं कि सरकार को इस बार कुल 262 लाख में मीट्रिक टन की खरीद हो पाई है, जबकि लक्ष्य 341.50 लाख टन का था। देश में जनसंख्या की दृष्टि से गेहूं की खपत अधिक है तथा दिन प्रतिदिन उपजाऊ जमीनों पर भवन निर्माण होने से खेती वाली जमीन कम होती जा रही है। इस पर भी सरकार को नियंत्रण करना चाहिए । हम मानते हैं की हाइब्रिड बीज के चलते प्रति हेक्टेयर गेहूं की उत्पादकता बढ़ी है, लेकिन जनसंख्या अधिक होने तथा खेतों का उपज क्षेत्र कम हो जाने से आने वाले समय में गेहूं की ओर किल्लत बन जाएगी। अतः उपजाऊ जमीन को भी बचाना जरूरी है।

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मैं लवकेश कौशिक, भारतीय नौसेना से रिटायर्ड एक नौसैनिक, Mandi Market प्लेटफार्म का संस्थापक हूँ। मैं मूल रूप से हरियाणा के झज्जर जिले का निवासी हूँ। मंडी मार्केट( Mandibhavtoday.net) को मूल रूप से पाठकों  को ज्वलंत मुद्दों को ठीक से समझाने और मार्केट और इसके ट्रेंड की जानकारी देने के लिए बनाया गया है। पोर्टल पर दी गई जानकारी सार्वजनिक स्रोतों से प्राप्त की गई है।