गेहूं की फ़सल का काल बन सकता है यह रोग | जानें लक्षण और इलाज।
किसान भाइयों, गेहूं एक प्रमुख खाद्य और व्यावसायिक उत्पाद है। लेकिन, समय-समय पर गेहूं की फसल विभिन्न प्रकार की बीमारियों का शिकार हो जाती है, जो उत्पादन में कमी का कारण बनती हैं। इन बीमारियों में से एक प्रमुख बीमारी है "पीला रतुआ रोग" (Yellow Rust), जो गेहूं की उपज को गंभीर रूप से प्रभावित कर सकती है। इस रोग के कारण न केवल पैदावार में कमी होती है, बल्कि किसानों की मेहनत भी व्यर्थ हो सकती है। पीला रतुआ एक प्रकार का फंगल रोग है, जो खासकर गेहूं की फसलों में देखा जाता है। इस रोग के कारण गेहूं के पौधों के पत्तों पर पीले रंग का पाउडर सा बन जाता है। यह पाउडर पौधों के पौष्टिक तत्वों को चूसकर उनकी वृद्धि को रोकता है। प्रारंभ में यह रोग खेत के एक हिस्से में दिखाई देता है, लेकिन अगर समय रहते इस पर ध्यान नहीं दिया जाए तो यह पूरे खेत में फैल सकता है। इसका असर गेहूं की गुणवत्ता और मात्रा पर सीधा पड़ता है। विशेषज्ञों का कहना है कि पीला रतुआ रोग से प्रभावित फसल का रंग हल्का पीला पड़ जाता है और इसके पत्ते मुरझाने लगते हैं। इससे न केवल फसल का उत्पादन घटता है, बल्कि यह गेहूं के पोषण की गुणवत्ता को भी प्रभावित करता है। इस रोग की पहचान करने में समय लग सकता है, लेकिन यदि इस पर जल्दी ध्यान दिया जाए तो यह आसानी से नियंत्रित किया जा सकता है। इस रिपोर्ट में हम पीले रतुए के रोग के बारे में विस्तार से जानेंगे, और इसके कारणों और इसके रोकथाम के उपायों पर चर्चा करेंगे। तो चलिए इन सब के बारे में जानने के लिए पढ़ते हैं यह रिपोर्ट।
पीला रतुआ रोग क्यों होता है
किसान साथियों, पीला रतुआ रोग मुख्य रूप से नमी और कुछ अन्य कृषि क्रियाओं के कारण फैलता है। विशेषज्ञों का मानना है कि जहां पर अधिक नमी रहती है, वहां इस रोग का प्रकोप अधिक होता है। उदाहरण के लिए, जब खेत में ज्यादा यूरिया का प्रयोग किया जाता है, तो मिट्टी में नमी बनी रहती है, जिससे यह रोग फैलता है। इसके अलावा, अगर किसान गेहूं के लिए उस क्षेत्र में पूर्व में प्रभावित बीज का उपयोग करते हैं, तो भी इस रोग के फैलने की संभावना बढ़ जाती है। इसका एक और कारण है खेतों में खेतों के बीच ज्यादा समय तक पानी का खड़ा रहना। इससे नमी बनी रहती है, जो पीला रतुआ को पनपने का आदर्श वातावरण प्रदान करती है। इसके अलावा, किसानों को यदि अपनी फसल के लिए संक्रमित बीज का चुनाव करने में सावधानी नहीं बरतनी चाहिए, तो यह रोग फैलने की स्थिति में आ जाता है।
पीला रतुआ रोग का प्रभाव
किसान साथियों, अगर समय रहते पीला रतुआ रोग का इलाज नहीं किया गया, तो यह गेहूं के उत्पादन में भारी गिरावट ला सकता है। विशेषज्ञों के अनुसार, यह रोग गेहूं की फसल के उत्पादन को 40-50 प्रतिशत तक घटा सकता है। यह रोग पौधों के रस को चूसने का काम करता है, जिससे पौधा कमजोर हो जाता है और सूखने लगता है। इस कारण गेहूं का उत्पादन भी प्रभावित होता है। जब यह रोग फैलता है, तो न केवल गेहूं की फसल की उपज घटती है, बल्कि बीज का आकार भी छोटा हो जाता है। जिसका असर सीधे तौर पर किसानों की आय पर पड़ता है, क्योंकि कम उत्पादन और खराब गुणवत्ता के कारण बाजार में कीमतों में भी गिरावट आ सकती है। इस कारण किसानों को आर्थिक नुकसान हो सकता है।
बचाव के उपाय
दोस्तों, माना कि पीला रतुआ एक खतरनाक बीमारी है, लेकिन इसे नियंत्रित करने के कुछ प्रभावी उपाय भी हैं। कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि किसानों को पहले से ही ऐसे गेहूं के बीजों का चयन करना चाहिए जो इस रोग के प्रति सहनशील हो। इससे रोग का प्रकोप कम होगा और फसल सुरक्षित रहेगी। इसके अलावा, यदि किसी किसान को अपने खेत में पीला रतुआ रोग का संकेत मिले, तो उसे तुरंत "प्रॉपिकोनाजोल" जैसे फंगिसाइड का प्रयोग करना चाहिए। इस फंगिसाइड का उपयोग 200 मिलीलीटर प्रति 200 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ के हिसाब से स्प्रे करना चाहिए। यह स्प्रे पीला रतुआ रोग को नियंत्रित करने में मदद करता है। एक अन्य उपाय के द्वारा किसान भाई गेहूं की फसल में पीला रतुआ रोग के लिए 100 लीटर पानी में 500 ग्राम जिंक सल्फेट और 2 किलोग्राम यूरिया को मिलाकर लगभग पौन एकड़ खेत में छिड़काव करने से एक सप्ताह के अंदर फसलों को इन रोगों से बचाया जा सकता है। इसके अलावा, खेत में यूरिया की अधिकता से बचने के लिए किसान को उचित पोषण प्रबंधन करना चाहिए और नमी को नियंत्रित करने की कोशिश करनी चाहिए।
वैज्ञानिक प्रयास
दोस्तों, कृषि वैज्ञानिकों ने इस रोग से बचाव के लिए नए बीजों पर काम करना शुरू कर दिया है, जो पीला रतुआ रोग के प्रति अधिक सहनशील हों। इस दिशा में वैज्ञानिक तेजी से काम कर रहे हैं और उम्मीद जताई जा रही है कि आने वाले समय में ऐसी गेहूं की किस्में बाजार में उपलब्ध होंगी, जो इस प्रकार के रोगों से सुरक्षित होंगीं। पीला रतुआ से बचाव के लिए अब नए गेहूं के बीज तैयार किए जा रहे हैं। कृषि वैज्ञानिकों का मानना है कि इन बीजों में रोगों के खिलाफ स्वाभाविक प्रतिरोधक क्षमता होगी। इन बीजों का विकास हो चुका है और आने वाले समय में किसानों को यह उपलब्ध भी कराए जाएंगे। इससे न केवल पीला रतुआ रोग से बचाव होगा, बल्कि किसानों की उपज भी बढ़ेगी। इसके साथ-साथ अभी जो बीज उपलब्ध हैं, उनमें रोगों के प्रति प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के प्रयास किए जा रहे हैं।
नोट: रिपोर्ट में दी गई सभी जानकारी किसानों के निजी अनुभव और इंटरनेट पर मौजूद सार्वजनिक स्रोतों से इकट्ठा की गई है। संबंधित किसी भी जानकारी को लागू करने से पहले कृषि विशेषज्ञों की सलाह अवश्य लें।
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About the Author
मैं लवकेश कौशिक, भारतीय नौसेना से रिटायर्ड एक नौसैनिक, Mandi Market प्लेटफार्म का संस्थापक हूँ। मैं मूल रूप से हरियाणा के झज्जर जिले का निवासी हूँ। मंडी मार्केट( Mandibhavtoday.net) को मूल रूप से पाठकों को ज्वलंत मुद्दों को ठीक से समझाने और मार्केट और इसके ट्रेंड की जानकारी देने के लिए बनाया गया है। पोर्टल पर दी गई जानकारी सार्वजनिक स्रोतों से प्राप्त की गई है।