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आलू के कन्द को बढ़ाने का सीक्रेट फार्मूला जान लो

आलू के कन्द को बढ़ाने का सीक्रेट फार्मूला जान लो
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किसान साथियो आलू की फसल में सिंचाई के दौरान पाले का खतरा होने के कारण फसल को नुकसान पहुंचने की संभावना रहती है। लेकिन, किसान बड़े आकार के आलू की पैदावार चाहते हैं और साथ ही फसल को बीमारियों से भी बचाना चाहते हैं। ऐसे में देसी मटका खाद एक बेहतरीन विकल्प हो सकता है। अक्टूबर-नवंबर में आलू की बुवाई करने वाले किसान इस समय अपनी फसल में दूसरा या तीसरा पानी दे रहे होंगे। सिंचाई से पहले मटका खाद का उपयोग करने से फसल की वृद्धि अच्छी होती है और उत्पादन भी बढ़ता है। युवा किसान आकाश चौरसिया ने मटका खाद बनाने और उपयोग करने की एक विशेष विधि बताई है, जिसका उपयोग करके किसान अपनी फसल को स्वस्थ और उत्पादक बना सकते हैं।

सिंचाई से पहले करे इस खाद का स्प्रे
आकाश चौरसिया जी का मानना है कि आलू की खेती में कार्बनिक पदार्थों का महत्वपूर्ण योगदान होता है। उन्होंने बताया कि जितना अधिक कार्बनिक पदार्थ मिट्टी में होगा, उतना ही बड़ा आलू का कंद बनेगा। वे अपनी खेती में प्रति एकड़ 10 टन कंपोस्ट खाद का उपयोग करते हैं। इसके अलावा, वे मिट्टी चढ़ाने के समय और सिंचाई के समय मटका खाद का भी इस्तेमाल करते हैं। मटका खाद एक प्राकृतिक खाद है जो न केवल आलू के कंद के आकार को बढ़ाता है, बल्कि पौधों की वृद्धि को भी बेहतर बनाता है और उन्हें बीमारियों से बचाता है।

कैसे तैयार करें मटका खाद को
एक प्रभावी जैविक खाद बनाने के लिए आप 20 किलो देसी गाय का गोबर, 20 लीटर देसी गाय का गोमूत्र, 2 किलो उड़द का आटा, 2 किलो सरसों की खली और 2 किलो गुड़ को मिलाकर 5 दिन तक रख सकते हैं। इसके बाद इस मिश्रण को पानी में मिलाकर फसलों में छिड़काव करें। यह घोल फसलों के लिए एक उत्तम जैविक खाद का काम करेगा और इससे फसलों की वृद्धि अच्छी होगी। यह घोल फसलों को आवश्यक पोषक तत्व प्रदान करता है और मिट्टी की उर्वरता को बढ़ाता है। इसके नियमित उपयोग से रासायनिक खादों के उपयोग को कम किया जा सकता है और फसलों की गुणवत्ता में सुधार हो सकता है।

कैसे करते है मटका खाद का इस्तेमाल
खाद देने के तुरंत बाद फसल की सिंचाई करना बेहद जरूरी है। खासकर आलू की फसल में। जब हम खाद देते हैं तो खाद में मौजूद पोषक तत्व मिट्टी में घुलकर पौधों की जड़ों तक पहुंचते हैं। सिंचाई करने से ये पोषक तत्व पौधों की जड़ों द्वारा आसानी से अवशोषित कर लिए जाते हैं, जिससे पौधों का विकास अच्छा होता है और आलू के कंद भी अच्छे आकार के बनते हैं। यह एक बेहद किफायती तरीका है और अगर इसे फसल चक्र में दो से तीन बार दोहराया जाए तो आलू की उपज में काफी वृद्धि देखने को मिल सकती है।

नोट: इस रिपोर्ट में दी गई सभी जानकारी किसानों के निजी अनुभव और इंटरनेट पर मौजूद सार्वजनिक स्रोतों से इकट्ठा की गई है। संबंधित किसी भी जानकारी को अमल में लाने से पहले कृषि विशेषज्ञों की सलाह अवश्य लें।

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About the Author
मैं लवकेश कौशिक, भारतीय नौसेना से रिटायर्ड एक नौसैनिक, Mandi Market प्लेटफार्म का संस्थापक हूँ। मैं मूल रूप से हरियाणा के झज्जर जिले का निवासी हूँ। मंडी मार्केट( Mandibhavtoday.net) को मूल रूप से पाठकों  को ज्वलंत मुद्दों को ठीक से समझाने और मार्केट और इसके ट्रेंड की जानकारी देने के लिए बनाया गया है। पोर्टल पर दी गई जानकारी सार्वजनिक स्रोतों से प्राप्त की गई है।