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लहसून का साईज बढ़ाना चाहते हैं तो बस ये काम कर लो | उत्पादन के भर जाएंगे भंडार

लहसून टिप्स
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लहसुन का साइज बढ़ाना है तो पोटाश का करें इस प्रकार इस्तेमाल

किसान भाइयों, खेती में मेहनत तो सभी करते हैं, लेकिन खेती में बढ़िया उत्पादन लेने के लिए सही जानकारी और सही तकनीक का ज्ञान होना बहुत ही आवश्यक है क्योंकि सही जानकारी और तकनीक अपनाने से आपकी फसल में चार चांद लग सकते हैं। खासकर लहसुन जैसी फसल में, जहां सही पोषण का समय पर उपयोग फसल की उपज, आकार और गुणवत्ता को नई ऊंचाइयों पर ले जा सकता है। दोस्तों वैसे तो लहसुन की फसल के लिए सभी आवश्यक पोषक तत्वों की अपने-अपने स्थान पर महत्वपूर्ण भूमिका होती है इसी प्रकार पोटेशियम की भी लहसुन की फसल के लिए अपनी एक महत्वपूर्ण आवश्यकता है, जो जड़ों के विकास, कंद के आकार और फसल की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने में मदद करता है। कई किसान भाई केवल बुवाई के समय पोटेशियम का उपयोग करते हैं, जबकि फसल के 50-70 दिन के बीच इसका दोबारा उपयोग चमत्कारी परिणाम देता है। इस रिपोर्ट में हम विस्तार से समझेंगे कि लहसुन की फसल में पोटेशियम, MOP (म्युरेट ऑफ पोटाश), SOP (सल्फेट ऑफ पोटाश) और अन्य पोषक तत्वों का सही समय पर और सही तरीके से उपयोग कैसे करें। इसके साथ ही, हम यह भी जानने की कोशिश करेंगे कि पोटेशियम का उपयोग सही तरीके से लहसुन की फसल में करके आप कैसे कम लागत में अधिक उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं।

पोटेशियम का महत्व

किसान साथियों, लहसुन की खेती में पोटेशियम का सही उपयोग आपकी फसल की उपज और गुणवत्ता को नई ऊंचाइयों पर ले जा सकता है। यह पौधे के हर हिस्से को पोषण देता है और उसकी रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है। पोटेशियम लहसुन की जड़ों को मजबूत बनाता है, जिससे पौधा मिट्टी से अधिक पोषण और पानी ले पाता है। साथ ही यह कंद के आकार और वजन को बढ़ाने में मदद करता है। पोटेशियम फसल की हरियाली और चमक को बढ़ाता है, जिससे बाजार में उसे बेहतर दाम मिलते हैं। इसके अलावा इसमें रोग प्रतिरोधक क्षमता भी काफी अधिक होती है जिसके कारण यह फसल को बीमारियों से बचाने में सहायक होता है।

पोटेशियम के प्रकार

किसान भाइयों, पोटेशियम मुख्य रूप से दो रूपों में बाजार में उपलब्ध है:

1. MOP (Muriate of Potash): साथियों, इसमें पोटेशियम क्लोराइड होता है। बाजार में आपको यह सस्ता और आसानी से उपलब्ध हो जाता है। इसका उपयोग मिट्टी में मिलाकर या ड्रिप इरिगेशन के माध्यम से किया जा सकता है।

2. SOP (Potassium Sulfate): दोस्तों, इसमें पोटेशियम के साथ सल्फर भी होता है। यह फसल की गुणवत्ता और चमक को बढ़ाने में अधिक प्रभावी है। इसके अलावा यह थोड़ा महंगा है, लेकिन उच्च गुणवत्ता के लिए उपयोगी है।

कब करें उपयोग
किसान साथियों, अब बात यह आती है कि लहसुन की फसल में कौन से पोटेशियम का उपयोग किस समय करना चाहिए। साथियों, अगर आप पोटेशियम का उपयोग बुवाई के समय करते हैं तो यह पौधे को शुरुआती पोषण प्रदान करता है। इसलिए आपको शुरुआती चरण में बेसल डोसे के रूप में लहसुन की फसल में पोटेशियम का उपयोग करना चाहिए। उसके बाद जब आपकी फसल 50-70 दिन के बीच पहुंच जाए, तब इस समय पोटेशियम के उपयोग से पौधे तेजी से बढ़ते हैं और उन्हें अतिरिक्त पोषण की आवश्यकता की पूर्ति होती है। 50 से 70 दिन के मध्य में यदि पोटेशियम का उपयोग आप लहसुन की फसल में करते हैं तो यह आपके फल के आकार को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसकी एक खासियत यह भी है कि आप पोटेशियम का उपयोग अन्य पोषक तत्वों के साथ मिलकर भी कर सकते हैं। पोटेशियम के साथ अन्य पोषक तत्वों का उपयोग आपकी फसल के उत्पादन को और बढ़ा सकता है। अगर लहसुन की फसल में इसके उपयोग और सही मात्रा की बात करें तो खड़ी फसल में 40-75 दिन के बीच, 0.52.34 (MKP) मोनो पोटैशियम फॉस्फेट उर्वरक (3 ग्राम) और बोरॉन 20% (डाई सोडियम ऑक्टा बोरेट टेट्रा हाइड्रेट) (1 ग्राम) को प्रति लीटर पानी में घोलकर पौधों पर छिड़काव करें। जब पौधों का विकास पूरी तरह से हो जाए, तो 0.0.50 (SOP) पोटैशियम सल्फेट उर्वरक (5 ग्राम) और सूक्ष्म पोषक तत्व (1 ग्राम) को प्रति लीटर पानी में घोलकर पौधों पर छिड़काव करें। लेकिन इनका छिड़काव करते समय ध्यान रखें कि छिड़काव के तुरंत बाद खेत में सिंचाई अवश्य करें ताकि पानी के साथ यह जमीन में जाकर जड़ों को पूरी तरह से आवश्यक पोषक तत्वों की प्राप्ति कर सके। पोटाश के साथ यदि आप बोरन का उपयोग करते हैं तो फिर आपको बोरन 20 प्रतिशत वाली 500 ग्राम मात्रा में लेनी है। और यदि आपको लगे कि तना पतला है, कमजोर फसल दिख रही है तो फिर फेरस सल्फेट लगभग 10 किग्रा लें। फेरस सल्फेट में 19 प्रतिशत लोहा यानी फेरस है और 10 प्रतिशत सल्फर भी मिल जाती है। इन तीनों को अच्छे से मिक्स कर लीजिए और इनका अपनी फसल में छिड़काव कर दीजिए। लेकिन आप इस बात का ध्यान रखें कि छिड़काव करने से पहले खेत में निराई-गुड़ाई का कार्य सही प्रकार से कर लें ताकि यह सारे पोषक तत्व पौधों को पूरी मात्रा में प्राप्त हो सके। निराई-गुड़ाई करने के तीन से चार दिन बाद ही आप इनका छिड़काव अपने लहसुन की फसल में करें।

पोटाश के फायदे
किसान भाइयों, पोटेशियम लहसुन की फसल के लिए अत्यंत आवश्यक पोषक तत्व है क्योंकि लहसुन एक कंद वाली फसल है। कंद का आकार और वजन जितना अच्छा होगा, उपज भी उतनी ही अधिक होगी। पोटाश कंदों में शर्करा (Sugar) और स्टार्च (Starch) के भंडारण को बढ़ाता है। इसके अलावा पोटाश पौधों में पानी के संतुलन को बनाए रखता है, जिससे सूखे की स्थिति में फसल की वृद्धि प्रभावित नहीं होती। साथ ही पोटाश का उपयोग कंद को मजबूत और चमकदार बनाता है, जिससे बाजार में फसल की कीमत बढ़ती है।

कब क्या कार्य करता है पोटाश

1.बुवाई के समय
साथियों, लहसुन की बुवाई के समय ही फसल को पोटाश की पहली खुराक दी जानी चाहिए। यह पौधे की प्रारंभिक वृद्धि के लिए आवश्यक पोषण प्रदान करता है। इस समय पर आप एनपीके 12:32:16 खाद का उपयोग करें: बुवाई के समय प्रति एकड़ 50-60 किलोग्राम एनपीके (NPK) डालें। इसमें 12% नाइट्रोजन (Nitrogen), 32% फॉस्फोरस (Phosphorus), और 16% पोटाश होता है। म्यूरेट ऑफ पोटाश (MOP) लाल रंग के चूर्ण के रूप में मिलने वाला यह खाद बुवाई के समय प्रभावी है। प्रति एकड़ 30-40 किलोग्राम म्यूरेट ऑफ पोटाश का उपयोग करें। बुवाई के समय पोटाश डालने से पौधों की जड़ें मजबूत होती हैं और उनकी प्रारंभिक वृद्धि बेहतर होती है।


2.25-30 दिनों के बाद
दोस्तों, जब लहसुन की फसल 25-30 दिनों की हो जाती है, तो उसे दूसरी बार पोटाश की आवश्यकता होती है। इस समय पौधे में ऊर्जा का अधिकतम उपयोग होता है। इस समय आप एनपीके 19:19:19 का स्प्रे करें: प्रति एकड़ 2-3 किलोग्राम एनपीके 19:19:19 को पानी में घोलकर स्प्रे करें। इसमें 19% नाइट्रोजन, 19% फॉस्फोरस, और 19% पोटाश होता है। यदि बुवाई के समय पर्याप्त पोटाश नहीं दिया गया हो, तो इस चरण पर म्यूरेट ऑफ पोटाश का उपयोग भी किया जा सकता है। इस स्टेज पर पोटाश देने से पौधों की पत्तियां हरी-भरी और स्वस्थ रहती हैं, जो फसल के लिए ऊर्जा का स्रोत होती हैं।


3.40-50 दिनों के बाद
किसान साथियों, यह समय फसल के विकास का एक महत्वपूर्ण चरण होता है। इस दौरान पौधे की पत्तियां और कंद तेजी से विकसित होते हैं। इस समय किस भाई एनपीके 0:52:34 का उपयोग करें: प्रति एकड़ 1-2 किलोग्राम एनपीके 0:52:34 को पानी में घोलकर स्प्रे करें। इसमें 34% पोटाश और 52% फॉस्फोरस होता है। इस समय इसका स्प्रे फसल के लिए काफी फायदेमंद है। इस समय यह फसल को अधिक ऊर्जा प्रदान करता है, जिससे कंद बड़े और मजबूत बनते हैं।


4.कंद बनने के समय
किसान भाइयों, जब लहसुन के कंद बनना शुरू हो जाते हैं (लगभग 60 दिनों के बाद), तो पौधों को अधिक पोटाश की आवश्यकता होती है। इस अवस्था में किसान भाई एनपीके 0:0:50 का उपयोग करें: इसके लिए प्रति एकड़ 1 किलोग्राम एनपीके 0:0:50 को पानी में घोलकर स्प्रे करें। इसमें 50% पोटाश होता है। इस चरण पर पोटाश देने से कंद का आकार और वजन बढ़ता है। साथ ही, कंद की गुणवत्ता भी बेहतर होती है। लहसुन की फसल में पोटाश का सही समय पर और सही मात्रा में उपयोग करने से पैदावार में उल्लेखनीय सुधार होता है। तीन से चार बार पोटाश डालने की प्रक्रिया अपनाने से कंद बड़े, मजबूत और वजनदार बनते हैं।

नोट:
रिपोर्ट में दी गई सभी जानकारी किसानों के नीचे अनुभव और इंटरनेट पर मौजूद सार्वजनिक स्रोतों से इकट्ठा की गई है। संबंधित किसी भी जानकारी को लागू करने से पहले कृषि विशेषज्ञों की सलाह अवश्य लें।

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About the Author
मैं लवकेश कौशिक, भारतीय नौसेना से रिटायर्ड एक नौसैनिक, Mandi Market प्लेटफार्म का संस्थापक हूँ। मैं मूल रूप से हरियाणा के झज्जर जिले का निवासी हूँ। मंडी मार्केट( Mandibhavtoday.net) को मूल रूप से पाठकों  को ज्वलंत मुद्दों को ठीक से समझाने और मार्केट और इसके ट्रेंड की जानकारी देने के लिए बनाया गया है। पोर्टल पर दी गई जानकारी सार्वजनिक स्रोतों से प्राप्त की गई है।