अगर ये नहीं पता तो आप नहीं बन सकते गेहूं के एक्सपर्ट | जाने गेहूं का उत्पादन बढ़ाने की खास टिप्स
दोस्तों, पिछले कुछ वर्षों में गेहूं की कई नई वैरायटीज़ वैज्ञानिकों द्वारा विकसित की गई हैं, जो अधिक पैदावार देने के लिए प्रसिद्ध हैं। इन नई किस्मों की पैदावार को वैज्ञानिक 80 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक मानते हैं, और कुछ किसानों को सचमुच इतनी पैदावार प्राप्त भी होती है। हालांकि, यह सभी किसानों के लिए समान नहीं होता, क्योंकि पैदावार पर विभिन्न कारक जैसे मिट्टी की गुणवत्ता, जलवायु, और कृषि विधियों का भी असर पड़ता है। अधिकतर हमारे किसान भी ये नई गेहूं की किस्मों को अपनाकर देख चुके हैं, ICAR-Indian Institute of Wheat & Barley Research, Karnal द्वारा बताए गए कुछ महत्वपूर्ण बिंदुओं के बारे में जानकारी दूंगा, जो हमारी पैदावार बढ़ाने में मदद कर सकते हैं। तो दोस्तों ICAR के शोध के अनुसार, कुछ गेहूं किस्मों की औसत उपज 79.4 क्विंटल प्रति हेक्टेयर पाई गई है, जो एच.डी. 2967 से 35.3% और एच.डी. 3086 से 13.6% अधिक है। इसके अलावा, इस किस्म की अधिकतम पैदावार क्षमता 87.7 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक मापी गई है। डी.डब्ल्यू.आर. (DWR) ने भी कई नई किस्में जैसे DBW 187, 303, 222, DBW 327, DBW 371, DBW 372, और पंजाब कृषि विश्वविद्यालय द्वारा विकसित 826 और 872 वैरायटीज़ दी हैं। इसके अलावा, एच.एन.बी. द्वारा विकसित 1270 वैरायटी भी एक बेहतरीन विकल्प साबित हुई है। इन सभी नई वैरायटीज़ को अपनाकर किसानों ने उच्च पैदावार प्राप्त कर सकते है
DBW 327 वेरायटी की उत्पादन विशेषताएं
DBW 327 की औसत उपज अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजना गेहूं के अगेती उच्च उपज क्षमता परीक्षणों में 79.4 क्विंटल/हेक्टेयर पाई गई है, जो कि एच.डी. 2967 से 35.3% और एच.डी. 3086 से 13.6% अधिक है। उत्पादन परीक्षणों के तहत इस किस्म से 87.7 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की अधिकतम पैदावार क्षमता दर्ज की गई है। इस किस्म में पूरे जोन में पैदावार की स्थिरता अच्छी पाई गई है और यह अधिक उर्वरकों तथा वृद्धि नियंत्रकों के प्रयोग पर अच्छे परिणाम दिखाती है। यह किस्म उच्च तापमान और सूखे के प्रति अवरोधी पाई गई है, जो लंबे समय तक उगाई जा सकती है।
बुआई का समय और बीज दर
बुआई का समय 20 अक्टूबर से लेकर 5 नवंबर तक होना चाहिए। बीज दर 100 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर रखी जानी चाहिए, और बुआई पंक्तियों के बीच 20 सेंटीमीटर की दूरी बनाए रखते हुए करनी चाहिए।
उर्वरकों की मात्रा
उर्वरकों का उपयोग मिट्टी परीक्षण पर आधारित होना चाहिए। उच्च उर्वरता वाली भूमि के लिए, प्रति हेक्टेयर 60 किलोग्राम फास्फोरस (P) और 40 किलोग्राम पोटाश (K) का प्रयोग किया जाना चाहिए। फास्फोरस और पोटाश की पूरी मात्रा बुआई के समय डालनी चाहिए, जबकि नाइट्रोजन (N) की आधी मात्रा बुआई के समय और शेष मात्रा पहली सिंचाई के बाद दी जानी चाहिए। किस्म की पूर्ण क्षमता को प्राप्त करने के लिए, 150% एनपीके और वृद्धि नियंत्रक का प्रयोग 15 टन प्रति हेक्टेयर देशी खाद के साथ किया जाना चाहिए।
किस्म की पूर्ण क्षमता को प्राप्त करने के लिए, यह महत्वपूर्ण है कि 150% एनपीके की सिफारिश की जाए। इसके साथ ही, वृद्धि नियंत्रक का प्रयोग भी अनिवार्य है। वृद्धि नियंत्रक (Plant Growth Regulators - PGR) पौधों की लंबाई को नियंत्रित करते हैं और तना मजबूत बनाते हैं, जिससे फसल गिरती नहीं है।
वृद्धि नियंत्रक का प्रयोग और उनके प्रकार
वृद्धि नियंत्रक, जिन्हें प्लांट ग्रोथ रेगुलेटर (PGR) भी कहा जाता है, पौधों में बायोसिंथेसिस की प्रक्रिया को रोकते हैं, जिससे पौधों की लंबाई कम होती है, तना मोटा और मजबूत बनता है, और फसल गिरने की संभावना कम होती है।
वृद्धि नियंत्रकों में क्लोरमिस्ट और टेबुकोनाजोल शामिल हैं। क्लोरमिस्ट का 2% सॉल्यूशन और टेबुकोनाजोल (जो फंगीसाइड के रूप में काम करता है) का 25% सॉल्यूशन तैयार किया जाना चाहिए। इन दोनों का दो बार छिड़काव करना जरूरी है:
- पहला छिड़काव पहले नोड पर किया जाना चाहिए।
- दूसरा छिड़काव फ्लैग लीफ स्टेज पर किया जाना चाहिए। इससे तना मजबूत होता है।
दोस्तों पहला स्प्रे फसल की आयु 55-60 दिन पर, प्रथम नोड स्टेज पर किया जाता है। इस चरण में पौधे की जड़ के ऊपर बनने वाली पहली गांठ (प्रथम नोड) स्पष्ट दिखाई देती है, जो चार छोटी गांठों का संग्रह होती है। इस स्टेज पर 200 लीटर पानी में 400 मिलीलीटर क्लोरोक्वेट क्लोराइड (सीसीसी) मिलाकर प्रति एकड़ छिड़काव करना चाहिए। इससे पौधे की लंबाई नियंत्रित रहती है, तना मजबूत होता है और अंतर-गांठीय दूरी कम होती है।
दूसरा स्प्रे फ्लैग लीफ स्टेज पर, फसल की आयु 75-80 दिन होने पर किया जाता है। फ्लैग लीफ चौथी गांठ से निकलने वाला पत्ता होता है, जो उत्पादन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इस स्टेज पर 200 लीटर पानी में 200 मिलीलीटर क्लोरोक्वेट क्लोराइड और 200 मिलीलीटर टेबुकोनाजोल (फंगी-साइड) मिलाकर प्रति एकड़ छिड़काव करें।
फसल की बेहतर देखभाल के लिए 55 दिन के बाद यूरिया का उपयोग नहीं करना चाहिए, क्योंकि इससे ऊपरी पत्तियों पर टिप बर्निंग की समस्या हो सकती है। साथ ही, ऑयल-बेस्ड कीटनाशकों का छिड़काव भी फ्लैग लीफ को नुकसान पहुंचा सकता है। फ्लैग लीफ को हरा-भरा और स्वस्थ रखना आवश्यक है, क्योंकि इसका फसल की उपज में बड़ा योगदान होता है। इन विधियों का पालन करने से पौधे की वृद्धि नियंत्रित रहती है, तना मजबूत होता है, और अधिकतम पैदावार प्राप्त होती है।
यदि हम इन सभी तकनीकों का सही तरीके से पालन करते हैं, तो अनुमानित उपज लगभग 31.7 से 32 क्विंटल प्रति एकड़ हो सकती है, जो कि लगभग 84-84 मण प्रति किलो के बराबर होगी। उत्पादन क्षमता 35 क्विंटल प्रति किलोग्राम तक हो सकती है।
नोट: रिपोर्ट में दी गई जानकारी किसानों के निजी अनुभव और इंटरनेट पर उपलब्ध सार्वजनिक स्रोतों से एकत्रित की गई है। किसान भाई किसी भी जानकारी को अमल में लाने से पहले कृषि विशेषज्ञों की सलाह अवश्य लें।👉 चावल के लाइव भाव देखने के लिए लिंक पर क्लिक करे
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About the Author
मैं लवकेश कौशिक, भारतीय नौसेना से रिटायर्ड एक नौसैनिक, Mandi Market प्लेटफार्म का संस्थापक हूँ। मैं मूल रूप से हरियाणा के झज्जर जिले का निवासी हूँ। मंडी मार्केट( Mandibhavtoday.net) को मूल रूप से पाठकों को ज्वलंत मुद्दों को ठीक से समझाने और मार्केट और इसके ट्रेंड की जानकारी देने के लिए बनाया गया है। पोर्टल पर दी गई जानकारी सार्वजनिक स्रोतों से प्राप्त की गई है।