बजट में किसानों को क्या कुछ मिल सकता है | इस रिपोर्ट में जाने
किसान साथियो केंद्र सरकार किसानों को समर्थन देने और खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम उठाने जा रही है। सरकार दलहन की तरह ही तिलहन के लिए भी बफर स्टॉक बनाने पर विचार कर रही है। यह फैसला केंद्र सरकार द्वारा तिलहन की न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) पर खरीद की अनुमति दिए जाने के बाद लिया गया है। इस योजना के तहत, सरकार अलग से फंड बनाकर राज्यों को तिलहन खरीदने और भंडारण करने में मदद करेगी। इस बफर स्टॉक का उपयोग बाजार में तिलहन की कीमतों में अचानक उतार-चढ़ाव को रोकने और किसानों को उचित मूल्य दिलाने में किया जाएगा। जब बाजार में कीमतें स्थिर हो जाएंगी, तो इस भंडारित तिलहन को बेचकर सरकार को राजस्व प्राप्त होगा।
बजट में क्या हो सकती है घोषणाएँ
सरकार किसानों के हित में एक महत्वपूर्ण कदम उठाने जा रही है। सूत्रों के मुताबिक, सरकार बजट में तिलहन की खरीद के लिए 500 करोड़ रुपये का एक रिवॉल्विंग फंड बनाने पर विचार कर रही है। इस फंड का उद्देश्य किसानों को फसल कटाई के समय होने वाले नुकसान से बचाना है। अक्सर देखा जाता है कि फसल कटाई के समय बाजार में तिलहन की कीमतें न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से 20 से 30 प्रतिशत तक कम हो जाती हैं, जिससे किसानों को भारी नुकसान होता है। इस फंड के माध्यम से सरकार किसानों से उनकी फसल एमएसपी पर खरीदेगी, जिससे किसानों को उचित मूल्य मिलेगा और उन्हें आर्थिक नुकसान से बचाया जा सकेगा। चावल के लाइव भाव देखने के लिए लिंक पर क्लिक करे
तिलहन मिशन को मिल सकता है बढ़ावा
सरकार द्वारा उठाए गए इस कदम से राष्ट्रीय तिलहन मिशन के लक्ष्यों को प्राप्त करने में काफी मदद मिलेगी। इस योजना के तहत तिलहन उत्पादक किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) का लाभ दिया जाएगा जिससे किसानों को अपनी फसल का उचित मूल्य मिलेगा। इसके साथ ही, यह योजना किसानों को अधिक से अधिक तिलहन उत्पादन के लिए प्रेरित करेगी। इससे देश में तिलहन उत्पादन बढ़ेगा और हमें खाद्य तेलों के आयात पर निर्भरता कम करने में मदद मिलेगी।
कैसे कर सकता है यह कदम किसानों की मदद
साल 2015-16 में तुअर दाल की कीमतों में अचानक वृद्धि हुई थी, जो 200 रुपये प्रति किलो के पार चली गई थी। इस स्थिति से निपटने के लिए सरकार ने मूल्य स्थिरीकरण कोष की शुरुआत की थी। इस कोष ने दाल की कीमतों को स्थिर रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी और तिलहन उत्पादक किसानों को प्रोत्साहित किया था। हालांकि, हाल के वर्षों में किसानों ने सोयाबीन और सरसों की जगह मक्का और चना जैसी अन्य फसलों को उगाना पसंद किया है। इसका मुख्य कारण मौसम की अनिश्चितता और तिलहन की कम कीमतें हैं। इस बदलाव के कारण सरकार का तिलहन उत्पादन बढ़ाने का लक्ष्य प्रभावित हो सकता है। सरकार का लक्ष्य 2030-31 तक तिलहन उत्पादन को 69.7 मिलियन टन तक बढ़ाना है, लेकिन किसानों के रुझान में बदलाव के कारण यह लक्ष्य पूरा करना चुनौतीपूर्ण हो सकता है। सरकार को तिलहन उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए किसानों को आकर्षित करने के लिए नई नीतियां और योजनाएं बनानी होंगी। साथ ही, किसानों को बेहतर बीज, उर्वरक और सिंचाई सुविधाएं उपलब्ध करानी होंगी।
अनाज-आधारित डिस्टिलरी ने मक्का कीमतों को दिया बढ़ावा
पिछले कुछ वर्षों में कई नए अनाज आधारित डिस्टिलरी उद्योग स्थापित हुए हैं। इन उद्योगों की स्थापना से मक्का की मांग बढ़ी है, जिसके परिणामस्वरूप मक्का की कीमतों में भी सुधार हुआ है। खासकर हाइब्रिड किस्मों का उपयोग करने से किसान एक हेक्टेयर भूमि से लगभग 5-5.5 टन मक्का उत्पादित कर पा रहे हैं। यदि मक्का की बाजार दर ₹2400 प्रति क्विंटल हो तो किसान एक सीजन में लगभग ₹1.32 लाख रुपये कमा सकते हैं। यह राशि सोयाबीन की तुलना में कहीं अधिक है, क्योंकि सोयाबीन से प्रति हेक्टेयर उत्पादन 1.5 टन के करीब होता है और किसान को लगभग ₹67,500 रुपये ही मिल पाते हैं। चावल के लाइव भाव देखने के लिए लिंक पर क्लिक करे
किसान मक्का की खेती में दिखा रहे है दिलचस्पी
किसानों ने हाल ही में तिलहन फसलों की बजाय मक्के की खेती की ओर रुख किया है। इसका मुख्य कारण मक्के का आकर्षक समर्थन मूल्य है, जो वर्तमान में 2,225 रुपये प्रति क्विंटल निर्धारित किया गया है। मंडियों में मक्के का औसत विक्रय मूल्य भी इससे अधिक है, जैसे कि उत्तर प्रदेश में 2,400 रुपये प्रति क्विंटल और राजस्थान में 2,375 रुपये प्रति क्विंटल। यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि पिछले साल अक्टूबर में मक्के का औसत मूल्य लगभग 2,100 रुपये प्रति क्विंटल था। इस साल कीमतों में वृद्धि का कारण फसल में नमी की मात्रा को बताया जा रहा है। किसानों को मिल रहे अच्छे दामों के कारण मक्के की खेती लोकप्रिय हो रही है।
सरसों और सोयाबीन की बुवाई में आई गिरावट
चालू रबी सीजन में सरसों की खेती में पिछले साल की तुलना में 5% की कमी देखी गई है। सरसों की बुवाई का क्षेत्रफल घटकर 89.3 लाख हेक्टेयर रह गया है। इसी तरह, खरीफ सीजन में भी सोयाबीन की खेती प्रभावित हुई है। सोयाबीन का रकबा 2% से अधिक घटकर 129.35 लाख हेक्टेयर रह गया है। इन दोनों प्रमुख तिलहनी फसलों के उत्पादन में कमी से देश में खाद्य तेलों की उपलब्धता पर असर पड़ने की आशंका है, जिससे तेल की कीमतों में बढ़ोतरी हो सकती है।
राष्ट्रीय तिलहन मिशन क्या है
भारत सरकार ने देश में खाद्य तेलों के उत्पादन को बढ़ावा देने और आयात पर निर्भरता कम करने के लिए एक महत्वाकांक्षी योजना शुरू की है। अक्टूबर 2024 में शुरू किए गए राष्ट्रीय खाद्य तेल मिशन के तहत, सरकार ने अगले कुछ वर्षों में तिलहन उत्पादन को दोगुने से अधिक करने का लक्ष्य रखा है। इस मिशन के लिए 10,103 करोड़ रुपये का बजट आवंटित किया गया है। सरकार का लक्ष्य है कि 2030-31 तक देश में तिलहन का उत्पादन 39 मिलियन टन से बढ़कर 69.7 मिलियन टन हो जाए। इसके साथ ही, खाद्य तेल का उत्पादन भी 25.45 मिलियन टन तक पहुंचाया जाए, जिससे देश की खाद्य तेल की कुल आवश्यकता का 72% हिस्सा देश में ही उत्पादित हो सके। इस योजना के सफल होने से देश खाद्य तेलों के आयात पर निर्भरता कम कर सकेगा और किसानों की आय में भी वृद्धि होगी।
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मैं लवकेश कौशिक, भारतीय नौसेना से रिटायर्ड एक नौसैनिक, Mandi Market प्लेटफार्म का संस्थापक हूँ। मैं मूल रूप से हरियाणा के झज्जर जिले का निवासी हूँ। मंडी मार्केट( Mandibhavtoday.net) को मूल रूप से पाठकों को ज्वलंत मुद्दों को ठीक से समझाने और मार्केट और इसके ट्रेंड की जानकारी देने के लिए बनाया गया है। पोर्टल पर दी गई जानकारी सार्वजनिक स्रोतों से प्राप्त की गई है।