इस साल जौ की खेती कर रहे हैं तो आपको यह पोस्ट देख लेनी चाहिए

 

जौ की फसल से गेहूं की से ज्यादा मुनाफा लेना है तो इस किस्म की करें बिजाई, जानिए क्या है विशेषताएं

किसान भाइयों, आज के दौर में कम पानी में अधिक पैदावार देने वाली फसलें हर किसान की पहली पसंद बन चुकी हैं। ऐसी फसलें न केवल खेती के खर्चों को कम करती हैं बल्कि कठिन परिस्थितियों में भी बेहतर परिणाम देती हैं। जौ (Barley) एक ऐसी ही फसल है जो सूखा-प्रभावित क्षेत्रों के लिए वरदान मानी जाती है। इसकी खेती कम पानी और कम लागत में की जा सकती है। आज हम आपको जौ की एक ऐसी ही वेरायटी के बारे में बताएंगे जो आर्थिक दृष्टि से किसानों के लिए काफ़ी फायदेमंद है। DWRB 137 जैसी वैरायटी पिछले कुछ सालों में बहुत प्रचलित रही है। यह कम पानी में भी बेहतर उत्पादन देती है और अधिक पानी में इसकी पैदावार 25-30 क्विंटल प्रति एकड़ तक हो सकती है। इसके अलावा DWRB 219 और DWRB 126 भी अच्छी वैरायटी हैं। इन वैरायटियों के बारे में हम आपको अपनी आगामी रिपोर्ट में विस्तार से जानकारी देंगे। किसान भाइयों के अनुसार, ये वैरायटी कम पानी में भी प्रभावी हैं और मौसम की प्रतिकूल परिस्थितियों में भी टिकाऊ रहती हैं। जौ की अच्छी पैदावार के लिए सही वैरायटी का चुनाव सबसे महत्वपूर्ण कदम है। अक्सर किसान भाई बाज़ार में जाकर बिना सही जानकारी के कोई भी वैरायटी खरीद लेते हैं, जिससे उन्हें बाद में नुकसान उठाना पड़ता है। इस रिपोर्ट में हम आपको जौ की वैरायटी DWRB 137 की बुवाई का समय, बीज की मात्रा, उर्वरकों (Fertilizers) का उपयोग और बीज उपचार तक हर बिंदु पर विस्तार से चर्चा करेंगे। अगर आप जौ की खेती करना चाहते हैं या पहले से कर रहे हैं, तो यह रिपोर्ट आपके लिए बहुत उपयोगी साबित होगी।

DWRB 137 की बुवाई का समय:
किसान भाइयों, जौ की वैरायटी DWRB 137 की बुवाई आप नवंबर महीने के आखिरी सप्ताह तक कर सकते हैं। इसकी बुवाई के लिए आदर्श समय 15 अक्टूबर से 25 नवंबर के बीच है। लेकिन कुछ किसान भाई इसकी बुवाई दिसंबर में भी करते हैं। दिसंबर में बुवाई करने पर भी इसका उत्पादन ठीक-ठाक निकलता है, हालांकि दिसंबर में बुवाई पर उत्पादन में 5 से 10% की कमी हो सकती है।

बीज की सही मात्रा:
साथियों, जौ की इस वैरायटी की बुवाई के लिए आपको 45 से 50 किलो बीज प्रति एकड़ की आवश्यकता होती है। अधिक बीज डालने से फसल में टिलरिंग (Branched Growth) की समस्या हो सकती है, जिससे पैदावार कम हो जाती है। इसलिए बीज की मात्रा संतुलित रखना बहुत ज़रूरी है।

बिजाई का तरीका:
किसान भाइयों, जौ की इस वैरायटी की बुवाई 1-1.5 इंच की गहराई पर करें। पंक्ति से पंक्ति की दूरी 23 सेंटीमीटर तथा पौधे से पौधे की दूरी 5 सेंटीमीटर रखनी चाहिए। इससे बीज का अंकुरण अच्छा होता है और पौधे जल्दी विकसित होते हैं। इस किस्म की बुवाई के लिए सही जल निकासी वाली हल्की दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त बताई जाती है। बुवाई से पहले फंगस और बीमारियों से बचाव के लिए बीज का उपचार करना बहुत ही ज़रूरी है। बीज को उपचारित करके बुवाई करने से फसल को काली बाल और अन्य फंगस जैसी समस्याओं से बचाया जा सकता है। बीज उपचार के लिए रेक्ज़िल 1 किलो बीज पर 1 मिलीलीटर का उपयोग करें या फिर कार्बेन्डाजिम 2 ग्राम प्रति किलो बीज पर इस्तेमाल करें। किसान भाई बीज उपचार के लिए थायोफेनेट मिथाइल का उपयोग भी कर सकते हैं। यह भी फंगस की रोकथाम के लिए उपयोगी है। बीज उपचार के बाद तुरंत बुवाई करें, ताकि बीज जल्दी अंकुरित हो और फसल स्वस्थ रहे।

सिंचाई प्रबंधन:
किसान भाइयों, जौ एक ऐसी फसल है जो कम पानी में भी अच्छी उपज देती है। इस किस्म की अच्छी उपज लेने के लिए सामान्यतः 2-3 सिंचाई की आवश्यकता होती है। पहली सिंचाई कल्ले निकलते समय (बिजाई के 30-35 दिन बाद), दूसरी सिंचाई बिजाई के 65-70 दिन बाद तथा तीसरी सिंचाई दानों में दूध बनते समय 95-105 दिन के बाद करना आवश्यक है।

उर्वरकों का सही उपयोग:
किसान भाइयों, जौ की इस वैरायटी के लिए उर्वरकों का सही उपयोग ज़रूरी है। उर्वरकों के सही उपयोग से फसल के उत्पादन के साथ-साथ मिट्टी की उर्वरता भी बनी रहती है। इसके लिए किसान भाई नाइट्रोजन का उपयोग प्रति बीघा 20-25 किलोग्राम, 8 से 10 किलो फॉस्फोरस, पोटाश 10-12 किलो की मात्रा प्रति बीघा डाल सकते हैं। इन उर्वरकों का उपयोग करने के लिए आप बुवाई के समय 50% नाइट्रोजन दें। बची हुई शेष नाइट्रोजन को पहली सिंचाई के बाद डालें। फॉस्फोरस और पोटाश की पूरी मात्रा बुवाई के समय खेत में डाल दें।

विशेषताएँ:
किसान साथियों, जौ की इस वैरायटी में कुछ प्रमुख विशेषताएँ भी हैं। इसकी बालियाँ हरी, सीधी एवं सघन हैं, तथा पौधों की औसत लंबाई 94 सेंटीमीटर है। यह किस्म अधिक आनुवंशिक उपज क्षमता एवं उच्च गुणकता के आधार पर अन्य जाँच किस्मों से श्रेष्ठ है। इस किस्म में पीला रतुआ रोग के विरुद्ध उच्च स्तर की प्रतिरोधकता है। साथ ही यह अन्य रोग एवं कीटों के लिए भी अच्छे स्तर की प्रतिरोधकता से परिपूर्ण है। यह किस्म लगभग 127 दिन में पककर तैयार हो जाती है। इस किस्म के दाने मोटे एवं बेहतर अनाज गुणवत्ता के साथ 1000 दानों का वजन 47 ग्राम के लगभग होता है। उत्पादन की दृष्टि से DWRB 137 को उत्तर पश्चिमी मैदानी क्षेत्र, उत्तर पूर्वी मैदानी क्षेत्र एवं मध्य क्षेत्र में अन्य जाँच किस्में जैसे बीएच 959, पीएल 751, आरडी 2786, बीएच 946, बीएच 902 एवं आरडी 2552 आदि के साथ परखा गया और इसे उत्पादन की दृष्टि से श्रेष्ठ पाया गया

खरपतवार नियंत्रण:
किसान भाइयों, जौ की फसल में संकरी पत्ती वाले खरपतवारों (नंडूसी / कनकी / गुल्ली डंडा, जंगली जई, लोमड़ घास) के नियंत्रण के लिए आइसोप्रोट्यूरॉन (75 WP) 1333 ग्राम या पिनॉक्साडेन (5 EC) 700-800 ग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करें। सभी खरपतवारनाशी / शाकनाशी का छिड़काव बुवाई के 30-35 दिन बाद 400-500 लीटर पानी में घोल बनाकर फ्लैट फैन नोजल से करें। बहु-शाकनाशी प्रतिरोधी कनकी के नियंत्रण के लिए पेंडीमैथालिन (30 EC) 3333-4950 ग्राम को 400-500 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर की दर से बुवाई के तुरंत बाद (2-3 दिन के अंदर) प्रयोग करें।


कटाई का समय
किसान साथियों, जौ की इस वैरायटी की फसल मार्च के अंत से अप्रैल के पहले पखवाड़े तक पककर तैयार हो जाती है। इसकी कटाई पूर्ण पकने की अवस्था में हाँसिए / दरांती से मज़दूरों द्वारा करा लेनी चाहिए। आजकल कटाई एवं बंधाई के लिए हार्वेस्टर का भी प्रचलन है। कटी हुई फसल को 2-3 दिन बाद पावर थ्रेशर से मढ़ाई करें। कंबाइन हार्वेस्टर से कटाई, मढ़ाई एवं ओसाई का कार्य एक साथ संपादित किया जा सकता है।


नोट: रिपोर्ट में दी गई सभी जानकारी किसानों के निजी अनुभव और इंटरनेट पर मौजूद सार्वजनिक स्रोतों से इकट्ठा की गई है। संबंधित किसी भी जानकारी को अमल में लाने से पहले कृषि विशेषज्ञों की सलाह अवश्य लें।