पराली की समस्या से मिलेगी मुक्ति | जादू से कम नहीं हैं ये चार कैप्सूल | जाने पूरी डिटेल्स
धान की खेती की कटाई का कार्य इस समय जोरों पर है और इसके साथ ही रबी फसलों की बुवाई की तैयारियां भी जोरो से जारी हैं। इस समय किसानों के सामने सबसे बड़ी चुनौती धान की कटाई के बाद खेतों में बचने वाली पराली की होती है कई क्षेत्रों में किसान धान की फसल अवशेष को जलाते हुए देखे जा रहे हैं।परन्तु अब पैडी क्रॉप रेसिड्यू मैनेजमेंट के तहत, अगर कोई किसान फसल अवशेष को जलाता हुआ पाया जाता है, तो उसके खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जा सकती है। साथ ही, जिन किसानों द्वारा फसल अवशेष जलाने का काम किया जाता है, उनके खेत के किला नंबर को पटवारी द्वारा लाल स्याही से चिन्हित कर रिकॉर्ड में दर्ज किया जाएगा।
सरकारी योजनाओं और पाबंदियों का असर
कृषि विभाग द्वारा चलाई जा रही किसान कल्याण योजनाओं का लाभ भी उन किसानों को नहीं मिलेगा जो पराली जलाते हुए पाए जाएंगे। इसीलिए किसानों को अपनी फसल अवशेष को जलाने की बजाय उचित प्रबंधन करने की सलाह दी जा रही है। सरकार ने इसके लिए प्रोत्साहन योजना भी शुरू की है। यदि किसान सीआरएस योजना के तहत ऑनलाइन पंजीकरण करते हैं, तो उन्हें प्रति एकड़ 1,000 रुपए का अनुदान दिया जा रहा है ताकि वे फसल अवशेष का सही प्रबंधन कर सकें।
सरकार ने पराली की समस्या से निपटने के लिए जगह-जगह पर बैठक की | इन बैठक के दौरान किसानों और अधिकारियों को अवगत कराया गया कि फसल अवशेष जलाने से भूमि की उर्वरता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। इससे भूमि में पाए जाने वाले मित्र कीट नष्ट हो जाते हैं, जो भूमि की उपजाऊ शक्ति के लिए आवश्यक होते हैं। इसके अलावा, पराली जलाने से वायु प्रदूषण होता है, जिससे स्वास्थ्य पर भी विपरीत प्रभाव पड़ सकता है, जैसे श्वसन संबंधी बीमारियां।
फसल अवशेष को मिट्टी में मिलाने के फायदे
किसानों को सलाह दी गई है कि वे फसल अवशेष को मिट्टी में मिलाने के लिए आधुनिक कृषि यंत्रों का उपयोग करें। इस प्रकिया से आप धान की कटाई के बाद बची पराली को खेत में ही मिलाकर खाद बनाएं। अभी हाल ही में भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI) पूसा के वैज्ञानिकों ने किसानों के लिए इस समस्या का समाधान निकाला है। वैज्ञानिकों द्वारा विकसित एक विशेष दवा का उपयोग करके किसान पराली को खेत में ही खाद में बदल सकते हैं। ऐसा करने से मिट्टी की उर्वरकता बढ़ती है इस प्रक्रिया से न केवल धान बल्कि अन्य फसलों के अवशेष भी मिट्टी में मिलाए जा सकते हैं, और यह पराली मल्चिंग (पलवार) के रूप में भी काम करती है, जिससे मिट्टी से नमी का वाष्पोत्सर्जन कम होता है और नमी लंबे समय तक संरक्षित रहती है। धान की पराली को सड़ाने के लिए पूसा डीकंपोजर कैप्सूल का उपयोग किया जा सकता है। प्रति हेक्टेयर 4 कैप्सूल का उपयोग करने से पराली जल्दी सड़कर खाद में परिवर्तित हो जाती है, जो मिट्टी की गुणवत्ता को सुधारने में सहायक होती है। इसके अलावा, इस तकनीक से गेहूं की फसल की बुवाई समय पर हो सकती है और उत्पादन की गुणवत्ता भी बेहतर होती है।
भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (पूसा) ने पराली जलाने से उत्पन्न होने वाले प्रदूषण की समस्या से निपटने के लिए एक बायो डीकंपोजर विकसित किया है। यह डीकंपोजर पराली को जैविक तरीके से गलाकर खाद में परिवर्तित करता है, जिससे पर्यावरण और कृषि भूमि, दोनों को लाभ मिलता है। वैज्ञानिकों का कहना है कि बायो डीकंपोजर का उपयोग करते समय, प्रोटोकॉल का सख्ती से पालन किया जाना चाहिए ताकि इसका अधिकतम प्रभाव देखा जा सके।
पूसा बायो डीकंपोजर एक माइक्रोबियल समाधान है, जो 20 दिनों के भीतर 70-80 प्रतिशत पराली को खाद में बदलने की क्षमता रखता है। इसका उपयोग खेत में छिड़काव के माध्यम से किया जाता है, जिससे पराली कुछ ही दिनों में गलनी शुरू हो जाती है।
बायो डीकंपोजर घोल बनाने की विधि
बायो डीकंपोजर के उपयोग के लिए, चार कैप्सूल से 25 लीटर का घोल तैयार किया जाता है। इस 25 लीटर घोल को 500 लीटर पानी में मिलाकर ढाई एकड़ में छिड़काव किया जा सकता है। धान की कटाई के बाद तुरंत इसका छिड़काव करना आवश्यक है, और छिड़काव के बाद पराली को मिट्टी में मिलाना या जुताई करना भी जरूरी है।
घोल बनाने की प्रक्रिया:
सबसे पहले 5 लीटर पानी में 100 ग्राम गुड़ उबालें और इसे ठंडा होने दें।
ठंडा होने के बाद, इस घोल में 50 ग्राम बेसन मिलाएं और फिर बायो डीकंपोजर कैप्सूल को इसमें डालें।
इस मिश्रण को 10 दिन तक एक अंधेरे कमरे में रखें ताकि यह पूरी तरह से तैयार हो सके।
जब यह घोल तैयार हो जाता है, तो इसे पराली पर छिड़कने के लिए उपयोग किया जाता है। छिड़काव के 15-20 दिनों के भीतर पराली सड़ने लगती है और यह खेत में जैविक खाद में बदल जाती है। इसके बाद, पराली और खेत की जुताई करना जरूरी होता है ताकि पराली का गलना तेज हो और भूमि की उर्वरता में सुधार हो।
वायु गुणवत्ता पर बायो डीकंपोजर का प्रभाव
इस साल, नवंबर में एनसीआर और उसके आसपास के इलाकों में वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) 400 से 450 तक पहुंच गया, जो 'गंभीर' और 'गंभीर प्लस' श्रेणी में आता है। वैज्ञानिकों का मानना है कि पूसा बायो डीकंपोजर वायु प्रदूषण को कम करने में सहायक हो सकता है, क्योंकि यह पराली जलाने की आवश्यकता को समाप्त कर देता है।
आधुनिक कृषि यंत्र और सरकारी प्रोत्साहन
पैडी क्रॉप रेसिड्यू मैनेजमेंट के तहत, किसान अपने खेत में फसल अवशेष को सुपर सीडर मशीन की सहायता से मिट्टी में मिला सकते हैं, जिससे गेहूं की बुवाई का काम भी आसानी से हो सकेगा। यह न केवल फसल अवशेष का सही निपटान करेगा, बल्कि भूमि की उर्वरता और उत्पादन क्षमता भी बढ़ाएगा। इस प्रक्रिया के लिए सरकार प्रति एकड़ 1,000 रुपए का प्रोत्साहन दे रही है। इस योजना का लाभ उठाने के लिए किसान ‘मेरी फसल-मेरा ब्यौरा’ पोर्टल पर जाकर 30 नवंबर तक पंजीकरण कर सकते हैं। यह पंजीकरण agriharyana.gov.in वेबसाइट पर किया जा सकता है।
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About the Author
मैं लवकेश कौशिक, भारतीय नौसेना से रिटायर्ड एक नौसैनिक, Mandi Market प्लेटफार्म का संस्थापक हूँ। मैं मूल रूप से हरियाणा के झज्जर जिले का निवासी हूँ। मंडी मार्केट( Mandibhavtoday.net) को मूल रूप से पाठकों को ज्वलंत मुद्दों को ठीक से समझाने और मार्केट और इसके ट्रेंड की जानकारी देने के लिए बनाया गया है। पोर्टल पर दी गई जानकारी सार्वजनिक स्रोतों से प्राप्त की गई है।